मेरी ही तरह एक नकारा , त्यागा हुआ
और असफल खिलाड़ी ईश्वर है
जो पूरी तरह से खालीपन से लबालब
भरा हुआ है
इसलिए उसने अपनी अलग सृष्टि करने की सोची
और बन बैठा वो ईश्वर
तुम्हारा ईश्वर
जो डरता है तुम्हारे उसे पूजे जाने से
वो विराम नहीं दे पाया खुद को
वो सीख रहा है सृष्टि करना
वो नाखुश है खुद से और भाग रहा है
उसकी बिरादरी अब तक
हँस रही है उस पर
और तुम जो रो रहे हो उसको
उसके असफल प्रयासों का
नमूना भर हो
हाँ उसकी सृष्टि की चाह के प्रयास
तुम्हारे दु:ख और संवेदनाएँ उसे
आईने सी लगती हैं ,जिसे हमेशा से
वो देखना चाहता था
तुंम्हारा होना उन कीड़ों की चेतना से
भिन्न नहीं है
जिसे उसने तुम्हारा पूर्वज बनाया
उसने जब भरे होंगे प्रकृति में रंग
वो अभिव्यक्त न हो पाने की
भड़ास भर रही होगी
उसने जब बनाया होगा
बंदरों ,गिलहरियों को
वो परतंत्रता का दु:ख रहा होगा
फिर जब वो मनुष्य बना बैठा
वो उस खोयी डायरी का दु:ख रहा होगा
जिसमें वो खुद के ही नैन नक्श
बनाया करता था , खुद की ही चाह में
तुम्हे छोड़ दिया गया है पिछले पल की तरह
वो जानता नहीं है तुम्हे
वो दूर निकल चुका है
कुछ दुआओं के अलावा शायद ही
तुम्हारी कोई याद हो उसे
और अब भी अगर वो तुम्हारी
घंटियों का शोर सुन पा रहा होगा
तो वो हाँफता हुआ भी
तेज दौड़ रहा होगा
वो तो किसी तलाश में है
किसी हुनर की , जो वो खोज ले
तो वापस मुँह दिखा सके
एक दौड़ पर निकला है वो , जो दिशाहीन है
तुम नहीं पा सकते उसे
जब तलक वो खुद को ना पा ले
वो यूँहि थक थक कर
आह की फूँक मारता रहेगा
और तुम्हारी घंटियों का बढ़ता हुआ शोर
उसे दौड़ाते रहेगा और शायद एक दिन
वो कलाकार बन ही जाएगा
और प्राप्त कर लेगा वो जिसे सीखते हुए
वो ईश्वर बन बैठा |
और असफल खिलाड़ी ईश्वर है
जो पूरी तरह से खालीपन से लबालब
भरा हुआ है
इसलिए उसने अपनी अलग सृष्टि करने की सोची
और बन बैठा वो ईश्वर
तुम्हारा ईश्वर
जो डरता है तुम्हारे उसे पूजे जाने से
वो विराम नहीं दे पाया खुद को
वो सीख रहा है सृष्टि करना
वो नाखुश है खुद से और भाग रहा है
उसकी बिरादरी अब तक
हँस रही है उस पर
और तुम जो रो रहे हो उसको
उसके असफल प्रयासों का
नमूना भर हो
हाँ उसकी सृष्टि की चाह के प्रयास
तुम्हारे दु:ख और संवेदनाएँ उसे
आईने सी लगती हैं ,जिसे हमेशा से
वो देखना चाहता था
तुंम्हारा होना उन कीड़ों की चेतना से
भिन्न नहीं है
जिसे उसने तुम्हारा पूर्वज बनाया
उसने जब भरे होंगे प्रकृति में रंग
वो अभिव्यक्त न हो पाने की
भड़ास भर रही होगी
उसने जब बनाया होगा
बंदरों ,गिलहरियों को
वो परतंत्रता का दु:ख रहा होगा
फिर जब वो मनुष्य बना बैठा
वो उस खोयी डायरी का दु:ख रहा होगा
जिसमें वो खुद के ही नैन नक्श
बनाया करता था , खुद की ही चाह में
तुम्हे छोड़ दिया गया है पिछले पल की तरह
वो जानता नहीं है तुम्हे
वो दूर निकल चुका है
कुछ दुआओं के अलावा शायद ही
तुम्हारी कोई याद हो उसे
और अब भी अगर वो तुम्हारी
घंटियों का शोर सुन पा रहा होगा
तो वो हाँफता हुआ भी
तेज दौड़ रहा होगा
वो तो किसी तलाश में है
किसी हुनर की , जो वो खोज ले
तो वापस मुँह दिखा सके
एक दौड़ पर निकला है वो , जो दिशाहीन है
तुम नहीं पा सकते उसे
जब तलक वो खुद को ना पा ले
वो यूँहि थक थक कर
आह की फूँक मारता रहेगा
और तुम्हारी घंटियों का बढ़ता हुआ शोर
उसे दौड़ाते रहेगा और शायद एक दिन
वो कलाकार बन ही जाएगा
और प्राप्त कर लेगा वो जिसे सीखते हुए
वो ईश्वर बन बैठा |
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