27 मार्च 2014

महसूस करता हूँ मैं ( संदीप रावत )


महसूस करता हूँ मैं
जानती हो तुम
कि कौन सा फूल झर जाएगा छूने भर से
शाख से छूट जाएगा कौन सा फल
पकड़ते ही .
क्यारियाँ ' गोड़ते ' हुए
पौधों की जड़ों को टटोलना है कहाँ तक...
महसूस करता हूँ मैं
जानती हो तुम 
कि बच्चों में से कौन सा बच्चा
दौड़ आएगा पुकारते ही
बच्चों में से कौन सा बच्चा
ज़रा सी डांट पे रूठ जायेगा और
कौन से बच्चे की आखें भर आयेंगी
आँखें दिखाते ही ...
महसूस करता हूँ मैं
जानती हो तुम
कि कितनी दूर तक ओस भीगी दूब पर चलने पर
प्रेम हो जाता है ख़ुद से .
किस पल एक सी हो जाती हैं हमारी अभिव्यक्तियाँ फूलों को देखकर
संगीत का कौन सा सुर मूंद जाता है पलकों को ...
महसूस करता हूँ मैं
जानती हो तुम
कि कितनी ही कविताएँ रह जानी हैं भीतर
जिनका अनुवाद हम नहीं कर सकेंगें
अपनी बोली ,अपनी मात्रभाषा में ...

-- संदीप रावत

Sandeep Rawat

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